Aims of ‘Lokrang Sanskritik Samiti’
‘Lokrang Sanskritik Samiti’ is an organization committed to a progressive and inclusive ideology. Its primary objective is to support cultural diversity and enhance social harmony.
- Friendly Relations: The committee seeks to establish friendly relations with organizations sharing similar ideologies. By fostering collaborations, it aims to support cultural richness and mutual growth.
- Unified Initiatives: The organization is dedicated to taking unified initiatives based on the decisions of its executive body. Collaborating with various cultural organizations is a crucial goal to promote harmony and prosperity in the cultural sphere.
- Independent of Political Affiliation: ‘Lokrang Sanskritik Samiti’ maintains a non-partisan stance, distancing itself from any political party affiliations. Its goal is to preserve independence and autonomy in the cultural domain, ensuring that cultural progress remains unhindered.
- Against Religious, Linguistic, Caste, and Regional Bias: The organization’s ideology transcends divisions based on religion, language, caste, and regionalism. It advocates against social inequality and discrimination, encouraging equal excellence in all cultural pursuits.
‘Lokrang Sanskritik Samiti’, as a cultural organization, is firmly committed to progressing towards new horizons of human rights and cultural prosperity.
यह एक जनपक्षधर,प्रगतिशील विचारधारा में यकीन करने वाला संगठन है । यह दूसरे समान विचारधारा के किसी भी संगठन के प्रति मित्रवत संबंद्ध रख सकता है और अपनी कार्यकारिणी के निर्णय के आधार पर संयुक्त पहलकदमी ले सकता है । यह संगठन किसी भी दलगत राजनैतिक पार्टी के करीब नहीं है । इसकी विचारधारा को धर्म, भाषा, जाति और क्षेत्रवाद के आधार पर बांटा नहीं जा सकता ।
लोकरंग सांस्कृतिक समिति, लोक संस्कृतियों के संवर्द्धन, संरक्षण के लिए कार्यरत है । विगत सोलह वर्षों से हमने लगभग 1600 से अधिक लोक कलाकारों को, जो व्यावसायिक नहीं हैं, जो गावों में खेती-किसानी करते हैं और अपने दुखःसुख भुलाने के वास्ते गीत और संगीत में अपनी पीड़ा व्यक्त करते हैं, को मंच प्रदान किया है ।
लोकरंग सांस्कृतिक समिति कोई व्यावसायिक संगठन नहीं है यह जनता का संगठन है जो जनता के सहयोग से चलाया जाता है । आप भी इसमें शामिल हो सकते हैं बशर्ते कि आप धर्म, भाषा, क्षेत्र, जाति के आधार पर किसी से नफरत, भेद-भाव न बरतते हों । आपका प्रगतिशील विचारधारा में विश्वास हो ।
लोकरंग सांस्कृतिक समिति भोजपुरी संस्कृति के उच्च आदर्शों से समाज को परिचित कराना चाहती है न कि फूहड़पन से । हमारा मानना है कि भोजपुरी गीतों को फूहड़पन की पहचान, मुम्बईया फिल्मों और व्यावसायिक लोगों ने दी है । भोजपुरी गीतों में दर्शन, संवेदना और मानवीय संदेश भरे पड़े हैं । लोकरंग सांस्कृतिक समिति ने अपने मंच पर भोजपुरी के तमाम संवेदनात्मक गीतों को मंच प्रदान किया है। देश के अन्य प्रान्तों की लोक गायकी एवं लोक नाटकों की टीमों को भी मंच प्रदान किया गया है l विदेशों में जा बसे भारतीय मूल के गायकों को भी इस आयोजन में बुलाया जाता रहा है बशर्ते कि वे हवाई जहाज का किराया खुद वहन कर सकें।
प्रकाशन के क्षेत्र में लोकरंग सांस्कृतिक समिति ने `लोकरंग-1´, ‘लोकरंग-2’, लोकरंग -3 और लोकरंग -4 पुस्तकों एवं ‘लोकरंग 2010’, ‘लोकरंग 2011’, ‘लोकरंग 2012’, ‘लोकरंग 2013’, ‘लोकरंग 2014’, लोकरंग 2015, लोकरंग 2016, लोकरंग 2018, लोकरंग 2019, लोकरंग 2021 और लोकरंग 2023 पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी शुरुआत की है जिसमें लोक संस्कृतियों के विविध पक्षों को उकेरने वाले देश के श्रेष्ठ रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित हैं ।
`लोकरंग-1, और लोकरंग-2 पुस्तकें, छपरा विश्वविद्यालय और वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा के एम0ए0 भोजपुरी पाठ्यक्रम में शामिल हैं तथा इन पर तमाम शोध कार्य हुए हैं ।
हम लोकगीतों के संग्रह का काम कर रहे हैं । पूर्वांचल में मुहर्रम के अवसर पर गाए जाने वाले झारी या ठकरी गीतों को पहली बार प्रकाशित किया गया है ।
लोकरंग सांस्कृतिक समिति गुमनाम लोक कलाकारों की खोज कर रही है । हमने ऐसे ही एक गुमनाम लोक कलाकार, ‘रसूल’ की खोज की है, जिनको अभी तक भुला दिया गया था। हमने क्षेत्र के लोक कलाकारों के बारे में भी सामग्री प्रकाशित की है ।